मुम्बई में परमाणु परीक्षण पर जन सभा
मुम्बई में परमाणु परीक्षण पर जन सभा
30 मई को हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी और ’विचार विमर्श ’ नामक संगठन ने दादर, मुम्बई में एक आम जन सभा आयोजित की। सभा का मुद्दा था “परमाणु परीक्षणों से हिन्दोस्तानी लोगों की क्या उम्मीदें हैं?” लगभग सौ लोगों ने सभा में हिस्सा लिया, जिनमें वैज्ञानिक, पत्रकार, पर्यावरण कार्यकर्ता, राजनीतिक दलों व टेªड यूनियनों के प्रतिनिधि तथा अन्य चिन्तित नागरिक शामिल थे।
’विचार विमर्श’ के संयोजक, मशहूर टेªड यूनियन कार्यकर्ता काÛ प्रभु देसाई ने सभा को सम्बोधित किया। पीपल्स साइंस मूवमेंट के डाÛ हेमू अधिकारी, हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की डाÛ संजीवनी जैन, सीटू के डाÛ विवेक मानटीरो, ब्लू स्टार कर्मचारी यूनियन के काÛ एनÛ वसुदेवन, भारतीय जनवादी अगाढी की विलमा फरनानडिज़, कमेटी फार पीपल्स एम्पावरमेंट के प्राफेसर भरत सेठ और वरिष्ठ पत्रकार शिवानन्द कन्न्ावी ने भी अपने विचार रखे। श्रोताओं से भी अनेक विचार रखे गये।
कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी
’विचार विमर्श’ संगठन का परिचय करवाते हुये काÛ प्रभु देसाई ने बताया कि यह संगठन मुम्बई में 1993 के साम्प्रदायिक दंगों के बाद, एक गम्भीर निर्दलीय चर्चा मंडल के रूप में शुरू हुआ था। उन्होंने इस सभा को आयोजित करने में हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की पहल का स्वागत किया और पूरे राष्ट्र के लिये चिंता के इस मुद्दे पर गंभीरता से चर्चा करने का आह्वान किया। डाÛ अधिकारी ने सभा की अध्यक्षता की। डाÛ विवेक मानटीरो ने कहा कि सैद्धान्तिक तौर पर हिन्दोस्तान की सुरक्षा के लिये परमाणु हथियार बनाना गलत नहीं है परन्तु इस समय क्यांें? चीन और पाकिस्तान के खिलाफ़ इतनी उत्तेजना क्यों?
डाÛ संजीवनी जैन ने बताया कि परमाणु परी़क्षण हिन्दोस्तान के शासक वर्गों द्वारा आयोजित एक बड़ा तमाशा है, देश की ज्वलंत समस्याओं से लोगों का ध्यान हटाने के लिये। ठीक इसी प्रकार शासक वर्ग साम्प्रदायिक दंगे आदि आयोजित करते हैं क्योंकि पिछले पचास सालों में वे लोगों की समस्याओं को हल करने में नाकामयाब रहे हैं। डाÛ संजीवनी जैन ने श्री वाजपयी द्वारा “जय विज्ञान” का नारा देकर युद्ध की सेवा में विज्ञान के इस्तेमाल को उचित ठहराने की कोशिश की भी निन्दा की। श्री शिवानन्द कन्नवी ने रणनीति विशेषज्ञों के उन खतरनाक दावों को ठुकराया कि हिन्दोस्तान परमाणु हथियारों का खर्चा उठा सकेगा। परमाणु होड़ के लिये जरूरी ढांचे पर विस्तार करते हुये उन्होंने मोबाइल लांचर, परमाणु पनडुब्बियों, शीघ्र चेतावनी रैडार, सर्वेक्षण उपग्रहों, विकिरण सुरक्षित प्रसारण, प्रक्षेपास्त्रों, इत्यादि के बारे में बताया।
कमेटी फार पीपल्स एम्पावरमेंट
उन्होंने लोगों से यह आग्रह किया कि हथियारों की होड़ और युद्ध के खतरे से बचने के लिये हिन्दोस्तान-पाकिस्तान-चीन के बीच फौरन समझौता करने की मांग की जाये। प्राफेसर भरत सेठ ने कहा कि लोगों को सत्ता में लाने के आन्दोलन को मजबूत करने की सख़्त जरूरत है। वरना, जैसा कि हमने देखा कि सिर्फ़ 5 लोगों ने परमाणु परीक्षण करने का फैसला लिया था, वैसे ही कल हिन्दोस्तान और पाकिस्तान में पांच पांच लोग अरबों लोगों को तबाह करने वाला परमाणु जंग छेड़ने का फैसला ले सकते हैं। विलमा फरनानडिज़ ने राष्ट्रीय गर्व के मुद्दे का ज़िक्र करते हुये बताया कि हिन्दोस्तान तभी गर्वपूर्ण राष्ट्र होगा जब गरीबी, निरक्षरता, बीमारी आदि मिटा दिये जायेंगे, बम विस्फोट करने से नहीं। देश को बहुराष्ट्रिक कंपनियों के लिये खोल देने और राष्ट्रीय सुरक्षा के बहाने सभी विरोध संघर्षोे को कुचलने के भाÛजÛपाÛ के कार्यक्रम की चेतावनी देते हुये काÛ वसुदेवन ने इसे हिन्दोस्तनी लोगों पर भाÛजÛपाÛ का असली बम बताया।
बातचीत का समाहार करते हुये डाÛ अधिकारी ने कहा कि 11 मई को तकनीक विज्ञान दिवस का नाम देना सच्चाई पर एक तमाचा है और हमें इस इलाके में शान्ति के लिये काम करना चाहिये। फिर श्रोताओं ने जोश के साथ अपने विचार रखे। हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की काÛ राधिका कन्न्ावी ने सभी को धन्यवाद देते हुये सभा का समापन किया।
जन संहार के सभी हथियारों को खत्म करने का बुलावा
31 मई, 1998 को न्यूयार्क के कोलम्बिया विश्वविद्यालय में इंडियन प्रोगेसिव स्टडी ग्रुप (प्रगतिशील हिन्दोस्तानी अध्ययन दल) ने “बम के बाद हिन्दोस्तान” के शाीर्षक पर एक आम सभा आयोजित की। सभा में हिस्सा लेने वालों ने एकमत से एक प्रस्ताव पेश किया, जिसमें दक्षिण एशिया से अमरीका में आये हुये लोगों से अपील की गई कि दुनिया के लोगों और खास तौर पर दक्षिण एशिया के लोगों को परमाणु बम से ब्लैकमेल करने के लिये परमाणु ताकतों को जिम्मेदार ठहराया जाये।
अखिल भारतीय प्रोेग्रेसिव स्टडी ग्रुप की तरफ से बोलते हुये, श्री आरÛ गोपालन ने कहा कि लोगों को अमरीका, हिन्दोस्तान और पाकिस्तान के खुदगर्ज प्रचार को ठुकरा देना चाहिये। अगर परमाणु हथियार युद्ध रोकने के लिये हैं, जैसा कि वे कह रहे हैं, तो क्या इसका मतलब है कि सभी देशों को परमाणु हथियार दिलाने से युद्ध का खतरा हट जायेगा? यह तो एक धोखा है और लोग इस बात को समझते हैं। लोग इस प्रकार के सभी हथियारों को खत्म कर देना चाहते है। लोग इस बात को नहीं मानते कि कुछ ताकतें “जिम्मेदार” है और कुछ “गुंडे” हैं। लोग समझाते हैं कि “जिम्मेदार” ताकतें अपने परमाणु एकाधिकार के जरिये दुनिया पर अपना हुक्म चलाना चाहते हैं। एनÛपीÛटीÛ और सीÛटीÛबीÛटीÛ उनके इन इरादों के साधन हैं। मई 1998 में हिन्दोस्तान और पाकिस्तान द्वारा परमाणु परीक्षण ने इस हुक्म का खंडन किया हैं। किसी भी शर्त पर “पुरानी” या “नई” परमाणु ताकतों को हालत बिगाड़ने की इजाजत नहीं दी जायेगी।
अखिल भारतीय प्रोेग्रेसिव स्टडी ग्रुप
हिन्दोस्तान और पाकिस्तान की सरकारों द्वारा इन समझौतों पर हस्ताक्षर करके उन्हें जायज़ ठहराने की हर कोशिश का विरोध करना चाहिये। यह अंतर्राष्ट्रीय सम्बंधों को लोकतांत्रिक बनाने और “बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाये” वाली हालत को खत्म करने के लिये जरूरी हैं, श्री गोपालन ने कहा।
सारी दुनिया यह जानती हैं कि हिन्दोस्तान और पाकिस्तान की सरकारों ने मई 1998 से पहले अपने परमाणु हथियार कार्यक्रमों और मंसूबों की वजह से एनÛपीÛटीÛ और सीÛटीÛबीÛटीÛ का विरोध किया था। इन तंग और खुदगर्ज वजहों को दुनिया के लोगों का समर्थन नहीं प्राप्त हुआ क्योंकि हिन्दोस्तान और दुनिया के लोग परमाणु व दूसरे हथियारों को खत्म करने की ख्वाइश रखते हैं। लोग बड़ी ताकतों की दादागिरी खत्म करना चाहते हैं। पर हिन्दोस्तान और पाकिस्तान की सरकारें “परमाणु गिरोह” को विस्तृत करना चाहते हैं, दुनिया में बड़ी ताकतों की दादागिरी को कायम रखना चाहते हैं। लोेगों को अमरीका, हिन्दोस्तान या पाकिस्तान के हुक्मरानों के आपसी झगड़ों में इस या उस पक्ष का साथ नहीं देना चहिये।
इन साम्राज्यवादी और खुदगर्ज मकसदों के खिलाफ़, दक्षिण एशिया से आये और विदेश में रहने वाले लोग उन सभी का समर्थन इकट्ठा करने के लिये संगठित हो रहे हैं जो
दक्षिण एशिया इलाके को गुलामी से मुक्त पाना चाहते हैं। यह एÛआईÛपीÛएसÛजीÛ, पीपल्स फ्रंट, ईस्ट इंडियन डिफेन्स कमेटी, स्टेंडिंग कानफरेन्स आफ साउथ एशियन्स और दूसरे संगठनों के काम से देखा जाता है।